“पांडव-गृह” जालोर जिले में पांडवों की नगरी : पाण्डगरा

त्रासदी और पुनर्निर्माण की गाथा

राजस्थान के जालोर जिले की आहोर तहसील में स्थित ऐतिहासिक ग्राम पाण्डगरा (पांडगरा) अपनी गौरवशाली विरासत, धार्मिक मान्यताओं और संघर्षों की गाथाओं के लिए प्रसिद्ध है। कभी यह गांव इतना विशाल था कि इसमें प्रवेश के लिए चारों दिशाओं में कुल 12 द्वार बने हुए थे। मारवाड़ रियासत के समय यह गांव राठौड़ वंश की करणोत शाखा के राजपूतों की जागीर रहा।

पाण्डवों से जुड़ा नाम और धार्मिक आस्था

स्थानीय मान्यता है कि महाभारत काल में पाण्डवो ने अपने अज्ञातवास के दौरान यहां पर आए थे। पाण्डवों की माता कुंती भगवान शिव की परम उपासक थीं। उनके आग्रह पर पाण्डवों ने समीपवर्ती ऐसराणा पर्वत पर एक शिवलिंग की स्थापना की, जिसे आगे चलकर सुरेश्वर महादेव कहा जाने लगा।
आज यही मंदिर सुरेश्वर महादेव मंदिर के नाम से विश्वविख्यात है। यहां का शिवलिंग अद्वितीय और अनुपम है, जिसके जैसा शिवलिंग विश्व में कही और देखने को नहीं मिलता।

17वीं शताब्दी की त्रासदी

पाण्डगरा के इतिहास में सबसे बड़ा मोड़ 17वीं शताब्दी में ठाकुर प्रेमसिंह करणोत के समय आया।
कहा जाता है कि होली के दिन चोरी के आरोप में पकड़े गए एक युवक को छुड़ाने के लिए उसके पिता ठाकुर साहब प्रेमसिंहजी के पास पहुंचे। ठाकुर ने युवक को छोड़ने का आदेश दिया, लेकिन संदेशवाहक ने जाति बंधुओं को यह कहकर भड़का दिया कि “ठाकुर साहब ने पुलिस वालों (रसाला, Cavalry Unit) जो कि जोधपुर स्टेट की घुड़सवार सेना होती थी जो गांव की सुरक्षा, युद्ध और प्रशासनिक कार्यों में सहयोग के लिए होती थी।) को खत्म करने का आदेश दिया है।”

इस झूठी और भ्रामक खबर ने भयावह रूप ले लिया और लगभग 500 युवाओं ने गांव की रसाला चौकी पर धावा बोल दिया और वहां तैनात 50 घुड़सवार जवानों (रसालों) की हत्या कर दी। घोड़ों की पूंछ काटकर उन्हें भगा दिया गया।
घटना की खबर जब मारवाड़ के महाराजा तक पहुंची, तो उन्होंने तुरंत पाण्डगरा पर चढ़ाई कर दी। परिणामस्वरूप पूरा गांव उजाड़ दिया गया और ठाकुर प्रेमसिंह जी की 16 गावो की जागीर जब्त कर ली गई सभी न्यायिक और प्रशासनिक अधिकार भी छीन लिए गए परिणामस्वरूप गांव ऊजड़ गया और ग्रामीण अपनी जान बचाकर आसपास के गांवों में शरण लेने को मजबूर हो गए।

पुनर्निर्माण और नया गांव

करीब 11 वर्ष बाद, ठाकुर प्रेमसिंह के बेटों को जागीर लौटा दी गई। जिसमें एक बेटे तेजसिंहजी ने इसके बाद पाण्डगरा को दोबारा बसाया गया। हालांकि नया गांव पुराने गांव से उत्तर दिशा में लगभग दो किलोमीटर दूर स्थापित हुआ। और दूसरे बेटे ने तीन किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में एक अलग गांव राजनवाड़ी स्थापित किया।

आज का पाण्डगरा लगभग 500 घरों का आबाद गांव है, जहां उच्च माध्यमिक स्कूल, हॉस्पिटल, डाक घर, मोबाईल इंटरनेट आदि सुविधाएं उपलब्ध हैं वर्तमान में यहां राजपूत, रावणा राजपूत, चौधरी, रेबारी, नाई, वैष्णव, मेघवाल, भील हरिजन और हीरागर समाज के लोग सौहार्दपूर्वक निवास करते हैं।

गौरव और पहचान

पाण्डगरा गांव आज भी अपनी ऐतिहासिक गाथाओं, धार्मिक महत्व और सामाजिक विविधता के कारण विशिष्ट पहचान के साथ जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर तथा तहसील मुख्यालय से 09 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
पाण्डवों की स्थापना कथा, सुरेश्वर महादेव मंदिर की ख्याति और 17वीं सदी की त्रासदी से लेकर पुनर्निर्माण तक—यह गांव राजस्थान के इतिहास का जीवंत साक्षी है।

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page